मुहब्बत करेगी असर धीरे धीरे
'इधर धीरे धीरे उधर धीरे धीरे'
झुकाती हो जब तुम नज़र धीरे धीरे
मिरा दिल है जाता ठेहर धीरे धीरे
क़िता:-
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"मैं हूं बस तुम्हारी, तुम्हारी रहूंगी"
कहा था येह पीछ्ले पहर धीरे धीरे
हुये हम हैं क़ुर्बान वादों पे तेरे
न जाना, ऐ जानां मुकर धीरे धीरे
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ये राह-ए-मुहब्बत नहीं इतनी आसान
संभल कर मिरे हम-सफ़र! धीरे धीरे
करूं गर ख़ता तो मुझे तुम बताना
न तुम फेर लेना नज़र धीरे धीरे
न खन्जर चलाया किया फिर भी घायल
हसीनों का जाना हुनर धीरे धीरे
लगी सेहल उल्फ़त मुझे इब्तिदा में
हुयी सख़्त येह रेह्गुज़र धीरे धीरे
हुआ दीन-ओ-दुनिया से :ग़ाफ़िल: मैं यारा
तुझे देख कर सोच कर धीरे धीरे
-मयंक
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असर कर रही यह ग़ज़ल धीरे धीरे...
ReplyDeleteहोश होंगे गुम मगर धीरे धीरे :)
shukriyah purvii jee:
ReplyDeleteaap ne bhee achcha sher kaha hai.:)
-Mayank